सागर में मोती भरे-पड़े हैं (लक्ष्य प्राप्ती की दिशा)- हिंदी कविता -अजय शोभने

सागर में मोती भरे-पड़े हैं

(लक्ष्य प्राप्ती की दिशा)

सागर में मोती भरे-पड़े हैं, पर वो कितनों को मिल पाते हैं ?
जो तैर – डूबता-उतराता है, बस वे मोंती उसके हो जाते हैं !

एवरेस्ट की चोटी छूने, कितनों के मन ललचाते हैं,
उनमें से न जाने कितने ही, सोच-सोच रह जाते हैं !
पुरुषार्थ बिना इस जग में, नाम न कोई कर पाते हैं,
प्रयास कर न हुए सफल, दे भाग्य-दोष रह जाते हैं !

सागर में मोती भरे-पड़े हैं, पर वो कितनों को मिल पाते हैं ?
जो तैर – डूबता-उतराता है, बस वे मोंती उसके हो जाते हैं !

उनमें से जो शोधी होते, पथ छोड़ नहीं वे जाते हैं,
साहसी होकर धैर्य वे रखते, फिर आगे बढ़ जाते हैं !
लक्ष्य पाने का संकल्प उठा, कर्मभूमी में डट जाते हैं,
कठिन परिश्रम के बल पर, विजय श्री वे पा जाते हैं !

सागर में मोती भरे-पड़े हैं, पर वो कितनों को मिल पाते हैं ?
जो तैर – डूबता-उतराता है, बस वे मोंती उसके हो जाते हैं !

 

Leave a Comment