गरजत-बरसत : असग़र वजाहत Part 6
गरजत-बरसत : असग़र वजाहत Part 6 कभी-कभी रात के विस्तार का कोई अंत नहीं होता। रात हमेशा साथ-साथ रहती है और अंधेरा कटे-फटे असंतुलित टुकड़ों में आसपास बिखरा रहता है। . . .फिर हम लोग ताऊ के साथ गांव चले गये। हमें बस रुलाई आती थी। हम रोते थे. . . पापा तो इधर-उधर देखने …