मनोरमा (उपन्यास) : मुंशी प्रेमचंद (अध्याय 19-अध्याय 21 )

मनोरमा (उपन्यास) : मुंशी प्रेमचंद (अध्याय 19-अध्याय 21 )

मनोरमा अध्याय 19 राजा विशाल सिंह ने इधर कई साल से राजकाज छोड़ रखा था। मुंशी वज्रधर और दीवान साहब की चढ़ बनी थी। प्रजा के सुख दुख की चिंता अगर किसी को थी, तो मनोरमा को थी। राजा साहब के सत्य और न्याय का उत्साह ठंडा पड़ गया था। मनोरमा को पाकर उन्हें किसी …

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मनोरमा (उपन्यास) : मुंशी प्रेमचंद (अध्याय 11-अध्याय 18)

मनोरमा (उपन्यास) : मुंशी प्रेमचंद (अध्याय 11-अध्याय )

मनोरमा (उपन्यास) : मुंशी प्रेमचंद (अध्याय 11-अध्याय 18) मनोरमा अध्याय 11 संध्या हो गई है। ऐसी उमस है कि सांस लेना मुश्किल है और जेल के कोठरियों में यह उमस और भी असह्य हो गई है। एक भी खिड़की नहीं, एक भी जंगला नहीं। उस पर मच्छरों का निरंतर गान कानों के परदे फाड़े डालता …

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मनोरमा (उपन्यास) : मुंशी प्रेमचंद (अध्याय 1-अध्याय 10)

मनोरमा (उपन्यास) : मुंशी प्रेमचंद

मनोरमा (उपन्यास) : मुंशी प्रेमचंद (अध्याय 1-अध्याय 11) मनोरमा अध्याय 1 मुंशी वज्रधर सिंह का मकान बनारस में है। आप हैं राजपूत, पर अपने को ‘मुंशी’ लिखते और कहते हैं। ‘ठाकुर’ के साथ आपको गंवारपन का बोध होता है। बहुत छोटे पद से तरक्की करते-करते आपने अन्त में तहसीलदार का उच्च पद प्राप्त कर लिया …

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