प्रेमाश्रम (उपन्यास) (भाग-2) : मुंशी प्रेमचंद

प्रेमाश्रम (उपन्यास) (भाग-2) : मुंशी प्रेमचंद

प्रेमाश्रम (उपन्यास) (भाग-2) : मुंशी प्रेमचंद 7. जब तक इलाके का प्रबन्धन लाला प्रभाशंकर के हाथों में था, वह गौस खाँ को अत्याचार से रोकते रहते थे। अब ज्ञानशंकर मालिक और मुख्तार थे। उनकी स्वार्थप्रियता ने खाँ साहब को अपनी अभिलाषाएँ पूर्ण करने का अवसर प्रदान कर दिया था। वर्षान्तर पर उन्होंने बड़ी निर्दयता से …

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प्रेमाश्रम (उपन्यास) : मुंशी प्रेमचंद

प्रेमाश्रम (उपन्यास) : मुंशी प्रेमचंद

प्रेमाश्रम (उपन्यास) : मुंशी प्रेमचंद 1.सन्ध्या हो गई है। दिन भर के थके-माँदे बैल खेत से आ गये हैं। घरों से धुएँ के काले बादल उठने लगे। लखनपुर में आज परगने के हाकिम की परताल थी। गाँव के नेतागण दिनभर उनके घोड़े के पीछे-पीछे दौड़ते रहे थे। इस समय वह अलाव के पास बैठे हुए …

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सेवासदन (उपन्यास) (भाग-4) : मुंशी प्रेमचंद

सेवासदन (उपन्यास) (भाग-4) : मुंशी प्रेमचंद

सेवासदन (उपन्यास) (भाग-4) : मुंशी प्रेमचंद 46 सदन को ऐसी ग्लानि हो रही थी, मानों उसने कोई बड़ा पाप किया हो। वह बार-बार अपने शब्दों पर विचार करता और यही निश्चय करता कि मैं बड़ा निर्दय हूं। प्रेमाभिलाषा ने उसे उन्मत्त कर दिया था। वह सोचता, मुझे संसार का इतना भय क्यों है? संसार मुझे …

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सेवासदन (उपन्यास) (भाग-3) : मुंशी प्रेमचंद

सेवासदन (उपन्यास) (भाग-3) : मुंशी प्रेमचंद

सेवासदन (उपन्यास) (भाग-3) : मुंशी प्रेमचंद 30 शहर की म्युनिसिपैलिटी में कुल अठारह सभासद थे। उनमें आठ मुसलमान थे और दस हिन्दू। सुशिक्षित मेंबरों की संख्या अधिक थी, इसलिए शर्माजी को विश्वास था कि म्युनिसिपैलिटी में वेश्याओं को नगर से बाहर निकाल देने का प्रस्ताव स्वीकृत हो जाएगा। वे सब सभासदों से मिल चुके थे …

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सेवासदन (उपन्यास) (भाग-2) : मुंशी प्रेमचंद

सेवासदन (उपन्यास) (भाग-2) : मुंशी प्रेमचंद

सेवासदन (उपन्यास) (भाग-2) : मुंशी प्रेमचंद 12 पद्मसिंह के एक बड़े भाई मदनसिंह थे। वह घर का कामकाज देखते थे। थोड़ी-सी जमींदारी थी, कुछ लेन-देन करते थे। उनके एक ही लड़का था, जिसका नाम सदनसिंह था। स्त्री का नाम भामा था। मां-बाप का इकलौता लड़का बड़ा भाग्यशाली होता है। उसे मीठे पदार्थ खूब खाने को …

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सेवासदन (उपन्यास) (भाग-1) : मुंशी प्रेमचंद

सेवासदन (उपन्यास) (भाग-1) : मुंशी प्रेमचंद

सेवासदन (उपन्यास) (भाग-1) : मुंशी प्रेमचंद 1 पश्चाताप के कड़वे फल कभी-न-कभी सभी को चखने पड़ते हैं, लेकिन और लोग बुराईयों पर पछताते हैं, दारोगा कृष्णचन्द्र अपनी भलाइयों पर पछता रहे थे। उन्हें थानेदारी करते हुए पच्चीस वर्ष हो गए, लेकिन उन्होंने अपनी नीयत को कभी बिगड़ने नहीं दिया था। यौवनकाल में भी, जब चित्त …

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शेख़ सादी (जीवनी) : मुंशी प्रेमचंद (अध्याय 1-अध्याय 12)

शेख़ सादी (जीवनी) : मुंशी प्रेमचंद

शेख़ सादी (जीवनी) : मुंशी प्रेमचंद (अध्याय 1-अध्याय 12) अध्याय 1 शेख़ मुसलहुद्दीन (उपनाम सादी) का जन्म सन् 1172 ई. में शीराज़ नगर के पास एक गांव में हुआ था। उनके पिता का नाम अब्दुल्लाह और दादा का नाम शरफुद्दीन था। ‘शेख़’ इस घराने की सम्मान सूचक पदवी थी। क्योंकि उनकी वृत्ति धार्मिक शिक्षा-दीक्षा देने …

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मनोरमा (उपन्यास) : मुंशी प्रेमचंद (अध्याय 19-अध्याय 21 )

मनोरमा (उपन्यास) : मुंशी प्रेमचंद (अध्याय 19-अध्याय 21 )

मनोरमा अध्याय 19 राजा विशाल सिंह ने इधर कई साल से राजकाज छोड़ रखा था। मुंशी वज्रधर और दीवान साहब की चढ़ बनी थी। प्रजा के सुख दुख की चिंता अगर किसी को थी, तो मनोरमा को थी। राजा साहब के सत्य और न्याय का उत्साह ठंडा पड़ गया था। मनोरमा को पाकर उन्हें किसी …

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मनोरमा (उपन्यास) : मुंशी प्रेमचंद (अध्याय 11-अध्याय 18)

मनोरमा (उपन्यास) : मुंशी प्रेमचंद (अध्याय 11-अध्याय )

मनोरमा (उपन्यास) : मुंशी प्रेमचंद (अध्याय 11-अध्याय 18) मनोरमा अध्याय 11 संध्या हो गई है। ऐसी उमस है कि सांस लेना मुश्किल है और जेल के कोठरियों में यह उमस और भी असह्य हो गई है। एक भी खिड़की नहीं, एक भी जंगला नहीं। उस पर मच्छरों का निरंतर गान कानों के परदे फाड़े डालता …

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मनोरमा (उपन्यास) : मुंशी प्रेमचंद (अध्याय 1-अध्याय 10)

मनोरमा (उपन्यास) : मुंशी प्रेमचंद

मनोरमा (उपन्यास) : मुंशी प्रेमचंद (अध्याय 1-अध्याय 11) मनोरमा अध्याय 1 मुंशी वज्रधर सिंह का मकान बनारस में है। आप हैं राजपूत, पर अपने को ‘मुंशी’ लिखते और कहते हैं। ‘ठाकुर’ के साथ आपको गंवारपन का बोध होता है। बहुत छोटे पद से तरक्की करते-करते आपने अन्त में तहसीलदार का उच्च पद प्राप्त कर लिया …

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