गृहदाह (बांग्ला उपन्यास) : शरतचंद्र चट्टोपाध्याय Part 4

गृहदाह (बांग्ला उपन्यास) : शरतचंद्र चट्टोपाध्याय Part 4

गृहदाह (बांग्ला उपन्यास) : शरतचंद्र चट्टोपाध्याय Part 4 (33) पाँच-छः दिन हुए, दो-तीन नौकर-नौकरानियों के अलावा सब कलकत्ता चले गये। एक मकान-मालिक नहीं गये। जरूरी काम के चलते, जाते-जाते वे न जा सके। इन कै दिनों तक रामचरण बाबू अपने काम में व्यस्त रहे, खास नजर नहीं आते। आज पहले-सुबह ही एकाएक वे ऊपर के …

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गृहदाह (बांग्ला उपन्यास) : शरतचंद्र चट्टोपाध्याय Part 3

गृहदाह (बांग्ला उपन्यास) : शरतचंद्र चट्टोपाध्याय Part 3

गृहदाह (बांग्ला उपन्यास) : शरतचंद्र चट्टोपाध्याय Part 3 (21) केदार बाबू की सेहत अभी पहले जैसी नहीं हो पायी थी। खा-पीकर बरामदे मे एक ईजी-चेयर पर पड़े-पड़े अखबार पढ़ते हुए, शायद जरा आँखें लग गयी थीं। दरवाजे पर खटका और गाड़ी की रूखी आवाज से उन्होंने आँख खोलकर देखा-सुरेश और उसके साथ-ही-साथ उसकी बेटी और …

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गृहदाह (बांग्ला उपन्यास) : शरतचंद्र चट्टोपाध्याय Part 2

गृहदाह (बांग्ला उपन्यास) : शरतचंद्र चट्टोपाध्याय Part 2

गृहदाह (बांग्ला उपन्यास) : शरतचंद्र चट्टोपाध्याय Part 2 (11) साँझ के बाद सिर झुकाए जब महिम अपने डेरे की तरफ लौट रहा था, तो उसकी शक्ल देखकर किसी को कुछ कहने की मजाल न थी। उस समय उसका प्राण, पीड़ा से बाहर आने के लिये उसी के हृदय की दीवारों को खोद रहा था। कैसे …

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गृहदाह (बांग्ला उपन्यास) : शरतचंद्र चट्टोपाध्याय Part 1

गृहदाह (बांग्ला उपन्यास) : शरतचंद्र चट्टोपाध्याय Part 1

गृहदाह (बांग्ला उपन्यास) : शरतचंद्र चट्टोपाध्याय Part 1 (1) महिम का परम मित्रा था सुरेश। एक साथ एम. ए. पास करने के बाद सुरेश जाकर मेडिकल-कॉलेज में दाखिल हुआ; लेकिन महिम अपने पुराने सिटी-कॉलेज में ही रह गया। सुरेश ने रूठे हुए-सा कहा-महिम, मैं बार-बार कह रहा हूँ-बी.ए., एम. ए. पास करने से कोई लाभ …

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