सपना टूट गया- विविध के स्वर-(हिन्दी कविता)-मेरी इक्यावन कविताएँ – अटल बिहारी वाजपेयी

 सपना टूट गया- विविध के स्वर-(हिन्दी कविता)-मेरी इक्यावन कविताएँ – अटल बिहारी वाजपेयी

 सपना टूट गया हाथों की हल्दी है पीली, पैरों की मेहँदी कुछ गीली पलक झपकने से पहले ही सपना टूट गया। दीप बुझाया रची दिवाली, लेकिन कटी न अमावस काली व्यर्थ हुआ आह्वान, स्वर्ण सवेरा रूठ गया, सपना टूट गया। नियति नटी की लीला न्यारी, सब कुछ स्वाहा की तैयारी अभी चला दो कदम कारवां, …

Read more

आओ! मर्दो नामर्द बनो- विविध के स्वर-(हिन्दी कविता)-मेरी इक्यावन कविताएँ – अटल बिहारी वाजपेयी

आओ! मर्दो नामर्द बनो- विविध के स्वर-(हिन्दी कविता)-मेरी इक्यावन कविताएँ – अटल बिहारी वाजपेयी

आओ! मर्दो नामर्द बनो मर्दों ने काम बिगाड़ा है, मर्दों को गया पछाड़ा है झगड़े-फसाद की जड़ सारे जड़ से ही गया उखाड़ा है मर्दों की तूती बन्द हुई औरत का बजा नगाड़ा है गर्मी छोड़ो अब सर्द बनो। आओ मर्दों, नामर्द बनो। गुलछरे खूब उड़ाए हैं, रस्से भी खूब तुड़ाए हैं, चूँ चपड़ चलेगी …

Read more

जंग न होने देंगे- विविध के स्वर-(हिन्दी कविता)-मेरी इक्यावन कविताएँ – अटल बिहारी वाजपेयी

जंग न होने देंगे- विविध के स्वर-(हिन्दी कविता)-मेरी इक्यावन कविताएँ – अटल बिहारी वाजपेयी

जंग न होने देंगे हम जंग न होने देंगे! विश्व शांति के हम साधक हैं, जंग न होने देंगे! कभी न खेतों में फिर खूनी खाद फलेगी, खलिहानों में नहीं मौत की फसल खिलेगी, आसमान फिर कभी न अंगारे उगलेगा, एटम से नागासाकी फिर नहीं जलेगी, युद्धविहीन विश्व का सपना भंग न होने देंगे। जंग …

Read more

देखो हम बढ़ते ही जाते- विविध के स्वर-(हिन्दी कविता)-मेरी इक्यावन कविताएँ – अटल बिहारी वाजपेयी

देखो हम बढ़ते ही जाते- विविध के स्वर-(हिन्दी कविता)-मेरी इक्यावन कविताएँ – अटल बिहारी वाजपेयी

देखो हम बढ़ते ही जाते बढ़ते जाते देखो हम बढ़ते ही जाते॥ उज्वलतर उज्वलतम होती है महासंगठन की ज्वाला प्रतिपल बढ़ती ही जाती है चंडी के मुंडों की माला यह नागपुर से लगी आग ज्योतित भारत मां का सुहाग उत्तर दक्षिण पूरब पश्चिम दिश दिश गूंजा संगठन राग केशव के जीवन का पराग अंतस्थल की …

Read more

 मनाली मत जइयो- विविध के स्वर-(हिन्दी कविता)-मेरी इक्यावन कविताएँ – अटल बिहारी वाजपेयी

 मनाली मत जइयो- विविध के स्वर-(हिन्दी कविता)-मेरी इक्यावन कविताएँ – अटल बिहारी वाजपेयी

 मनाली मत जइयो मनाली मत जइयो, गोरी राजा के राज में। जइयो तो जइयो, उड़िके मत जइयो, अधर में लटकीहौ, वायुदूत के जहाज़ में। जइयो तो जइयो, सन्देसा न पइयो, टेलिफोन बिगड़े हैं, मिर्धा महाराज में। जइयो तो जइयो, मशाल ले के जइयो, बिजुरी भइ बैरिन अंधेरिया रात में। मनाली तो जइहो। सुरग सुख पइहों। …

Read more

अपने ही मन से कुछ बोलें- विविध के स्वर-(हिन्दी कविता)-मेरी इक्यावन कविताएँ – अटल बिहारी वाजपेयी

अपने ही मन से कुछ बोलें- विविध के स्वर-(हिन्दी कविता)-मेरी इक्यावन कविताएँ – अटल बिहारी वाजपेयी

अपने ही मन से कुछ बोलें क्या खोया, क्या पाया जग में मिलते और बिछुड़ते मग में मुझे किसी से नहीं शिकायत यद्यपि छला गया पग-पग में एक दृष्टि बीती पर डालें, यादों की पोटली टटोलें! पृथ्वी लाखों वर्ष पुरानी जीवन एक अनन्त कहानी पर तन की अपनी सीमाएँ यद्यपि सौ शरदों की वाणी इतना …

Read more

बबली की दिवाली- विविध के स्वर-(हिन्दी कविता)-मेरी इक्यावन कविताएँ – अटल बिहारी वाजपेयी

बबली की दिवाली- विविध के स्वर-(हिन्दी कविता)-मेरी इक्यावन कविताएँ – अटल बिहारी वाजपेयी

बबली की दिवाली बबली, लौली कुत्ते दो, कुत्ते नहीं खिलौने दो, लम्बे-लंबे बालों वाले, फूले-पिचके गालों वाले। कद छोटा, खोटा स्वभाव है, देख अजनबी बड़ा ताव है, भागे तो बस शामत आई, मुंह से झटपट पैण्ट दबाई। दौड़ो मत, ठहरो ज्यों के त्यों, थोड़ी देर करेंगे भौं-भौं। डरते हैं इसलिए डराते, सूंघ-सांघ कर खुश हो …

Read more

अंतरद्वंद्व- विविध के स्वर-(हिन्दी कविता)-मेरी इक्यावन कविताएँ – अटल बिहारी वाजपेयी

अंतरद्वंद्व- विविध के स्वर-(हिन्दी कविता)-मेरी इक्यावन कविताएँ – अटल बिहारी वाजपेयी

अंतरद्वंद्व क्या सच है, क्या शिव, क्या सुंदर? शव का अर्चन, शिव का वर्जन, कहूँ विसंगति या रूपांतर? वैभव दूना, अंतर सूना, कहूँ प्रगति या प्रस्थलांतर?

बुलाती तुम्हें मनाली- विविध के स्वर-(हिन्दी कविता)-मेरी इक्यावन कविताएँ – अटल बिहारी वाजपेयी

बुलाती तुम्हें मनाली- विविध के स्वर-(हिन्दी कविता)-मेरी इक्यावन कविताएँ – अटल बिहारी वाजपेयी

बुलाती तुम्हें मनाली आसमान में बिजली ज़्यादा, घर में बिजली काम। टेलीफ़ोन घूमते जाओ, ज़्यादातर गुमसुम॥ बर्फ ढकीं पर्वतमालाएं, नदियां, झरने, जंगल। किन्नरियों का देश, देवता डोले पल-पल॥ हरे-हरे बादाम वृक्ष पर, लाडे खड़े चिलगोज़े। गंधक मिला उबलता पानी, खोई मणि को खोजे॥ दोनों बांह पसार, बुलाती तुम्हे मनाली। दावानल में मलयानिल सी, महकी, मित्र, …

Read more

रोते रोते रात सो गई- विविध के स्वर-(हिन्दी कविता)-मेरी इक्यावन कविताएँ – अटल बिहारी वाजपेयी

रोते रोते रात सो गई- विविध के स्वर-(हिन्दी कविता)-मेरी इक्यावन कविताएँ – अटल बिहारी वाजपेयी

रोते रोते रात सो गई झुकी न अलकें झपी न पलकें सुधियों की बारात खो गई रोते रोते रात सो गई दर्द पुराना मीत न जाना बातों ही में प्रात हो गई रोते रोते रात सो गई घुमड़ी बदली बूंद न निकली बिछुड़न ऐसी व्यथा बो गई रोते रोते रात सो गई