बिराज बहू (बांग्ला उपन्यास) : शरतचंद्र चट्टोपाध्याय Part 2

बिराज बहू (बांग्ला उपन्यास) : शरतचंद्र चट्टोपाध्याय Part 2

बिराज बहू (बांग्ला उपन्यास) : शरतचंद्र चट्टोपाध्याय Part 2 8 पता नहीं किस तरह सुन्दरी को घर जाने की वात नमक-मिर्च लगाकर बिराज के कानो में पड़ गई। पड़ोस की बुआ आई थी। उसने खूब आलोचना की। बिराज ने सबकुछ सुनकर गंभीर स्वर में कहा- “बुआ माँ! आपको उनका एक कान काच लेना चाहिए था!” …

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बिराज बहू (बांग्ला उपन्यास) : शरतचंद्र चट्टोपाध्याय Part 1

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बिराज बहू (बांग्ला उपन्यास) : शरतचंद्र चट्टोपाध्याय Part 1 1 हुगली जिले का सप्तग्राम-उसमें दो भाई नीलाम्बर व पीताम्बर रहते थे। नीलाम्बर मुर्दे जलाने, कीर्तन करने, ढोल बजाने और गांजे का दम भरने में बेजोड़ था। उसका कद लम्बा, बदन गोरा, बहुत ही चुस्त, फुर्तीला तथा ताकतवर था। दूसरों के उपकार के मामले में उसकी …

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बड़ी दीदी (बांग्ला उपन्यास) : शरतचंद्र चट्टोपाध्याय Part 2

बड़ी दीदी (बांग्ला उपन्यास) : शरतचंद्र चट्टोपाध्याय Part 2

बड़ी दीदी (बांग्ला उपन्यास) : शरतचंद्र चट्टोपाध्याय Part 2 प्रकरण 6 लगभग पांच वर्ष बीत चुके हैं। राय महाशय अब इस संसार में नहीं हैं और ब्रजराज लाहिडी भी स्वर्ग सिधार चुके हैं। सुरेन्द्र की विमाता अपने पति की जी हुई सारी धन सम्पति लेकर अपने पिता के घर रहने लगी है। आजकाल सुरेन्द्रनाथ की …

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बड़ी दीदी (बांग्ला उपन्यास) : शरतचंद्र चट्टोपाध्याय Part 1

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बड़ी दीदी (बांग्ला उपन्यास) : शरतचंद्र चट्टोपाध्याय Part 1 प्रकरण 1 इस धरती पर एक विशिष्ट प्रकार के लोग भी वसते है। यह फूस की आग की तरह होते हैं। वह झट से जल उठते हैं और फिर चटपट बुझ जाते हैं। व्यक्तियों के पीठे हर समय एक ऐसा व्यक्ति रहना चाहिए जो उनकी आवश्यकता …

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