बिराज बहू (बांग्ला उपन्यास) : शरतचंद्र चट्टोपाध्याय Part 2
बिराज बहू (बांग्ला उपन्यास) : शरतचंद्र चट्टोपाध्याय Part 2 8 पता नहीं किस तरह सुन्दरी को घर जाने की वात नमक-मिर्च लगाकर बिराज के कानो में पड़ गई। पड़ोस की बुआ आई थी। उसने खूब आलोचना की। बिराज ने सबकुछ सुनकर गंभीर स्वर में कहा- “बुआ माँ! आपको उनका एक कान काच लेना चाहिए था!” …